शायद तुम्हें याद हो - कविता - अवनीश अगरकर

शायद तुम्हें याद हो 
आज की जैसी रातो में कभी
कुछ सालो पहले
मैंने तुमसे और तुमने मुझसे 
प्रेम किया था ।

शायद तुम्हें याद हो
की इसी अन्नत आकाश के नीचे
मैंने तुम्हे और तुमने मुझे
एक वादा किया था ।

शायद तुम्हें याद हो
की इन्हीं काले बादलों और 
चंद टिमटिमाते तारो के नीचे
मैंने तुम्हे और तुमने मुझसे
बहुत सारी बाते की थी ।

शायद तुम्हें याद हो
इसी भिंगी घास पर
जहां ओस की बूंदे आज भी गिरी परी है
मैंने तुम्हारे और तुमने मेरे
बालों को सहलाती थी ।

और आज के इस अकेले 
और दुख भरी रात में
मै तुमसे इतना ही प्रेम करता हूं
जितना कि मै उस पहली मुलाकात से
उस रात में बिताए हर पल को साथ लिए
आखरी बार भीगती पलको के साथ
अन्तिम बार देखा था से लेकर आज और अभी भी करता हूँ।
शायद तुम्हें याद हो ।


अवनीश अगरकर - पटना (बिहार)

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