रिश्तों का हाल - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

जब पहले वाले लोग सभी
पत्तों मे खाना खाते  थे ।

घर में मेहमां के आते ही 
वह हरे  भरे हो जाते थे  ।

माटी के वर्तन का प्रयोग  
जब जग वालों ने शुरू किया।

खुद भी मिट्टी से जुड़कर ही
रिश्तों का पालन शुरू किया ।

पीतल के बर्तन आने तक 
तो रिश्ते  भी चमकीले थे ।

स्टील ,काँच के आने तक
ना रिश्ते  रहे लचीले थे ।

जब थर्माकोल बना बर्तन
रिश्ते भी बिखरे यहाँ वहाँ।

है अब तो यूज और थ्रो 
सारे रिश्तों का हाल यहाँ ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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