पत्तों मे खाना खाते थे ।
घर में मेहमां के आते ही
वह हरे भरे हो जाते थे ।
माटी के वर्तन का प्रयोग
जब जग वालों ने शुरू किया।
खुद भी मिट्टी से जुड़कर ही
रिश्तों का पालन शुरू किया ।
पीतल के बर्तन आने तक
तो रिश्ते भी चमकीले थे ।
स्टील ,काँच के आने तक
ना रिश्ते रहे लचीले थे ।
जब थर्माकोल बना बर्तन
रिश्ते भी बिखरे यहाँ वहाँ।
है अब तो यूज और थ्रो
सारे रिश्तों का हाल यहाँ ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)