पिय आवन की - भोजपुरी कविता - बजरंगी लाल

काली घटा घनघोर घिरी,
बदरा बरसे बिजुरी चमकी।
हिय में है उठत हिलोर सखी,
पिय आवन की, पिय आवन की।।

               बोलत दादुर मोर पपीहा,
               धीर रहत नहीं मोंर शरीरा।
               नैन बहत हमरे नित नीरा,
               मन हमरो अब होत अधीरा।।

छप्पर-छान छवावन बाकी,
ठिठुर-ठिठुर हम रातहिं काटी।
अबहूँ नहिं आवै निठुर निरदइया,
धान रोपावन की आयी समइया।।

               पावत पानी फसल हरियानी,
               सूखत तोहरो लगावल धानी।।
               अबहूँ नहिं पीय करौं मनमानी,
               आवौ न जल्दी झुरात जवानी।।

बजरंगी लाल - डीहपुर, दीदारगंज, आजमगढ़ (उ०प्र०)

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