योगक्षेमं वहाम्यहम् - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

आज    मनाएँ   योग दिवस , मिलें   करें  सब योग।
प्राणायाम    भी   साथ  में , स्वयं     भगाएँ    रोग।।१।।

योग   न   केवल    साधना , नवसर्जन   नव सोच।
है    समत्व   की   योजना , करें   बिना    संकोच।।२।।

स्रोत   योग    ऊर्जस्विता , नव जागृति   जयघोष।
इन्द्रिय  जेता     नियन्ता , सदा      मिटाए    रोष।।३।।

योगक्षेमं      वहाम्यहम् , निर्माणक         विश्वास।
राष्ट्र    एकता  सूत्र  यह ,  देश भक्ति      आभास।।४।।

परहित     नित     सद्भावना , सत्कर्मी      संदेश।
नीति   रीति   स्नेहिल पथी , योग   बने   परिवेश।।५।।

राष्ट्र धर्म    प्रतिमान    यह , ख़ुद में दृढ़   संकल्प।
तन मन धन सुख शान्ति का ,केवल योग विकल्प।।६।।

करें     योग     से   मित्रता , शत्रुंजय        संसार।
बने  धीर     नित    साहसी , आत्मबली   आचार।।७।।

रोग    शोक   संताप   सब , मोह  कपट   से   दूर।
स्वाभिमान    सम्मान    जग,  बने   नहीं   मज़बूर।।८।।

योग  नीति  सह  कर्म का , ध्यान   राज  सत्काम।
मुक्ति मार्ग   संताप  त्रय  ,  जीवन   धन्य  सुनाम।।९।।

मानवता   रक्षक   सदा ,  साधन   नैतिक    राह।
करें  नियोजित  योग  से , भौतिकता  हर   चाह।।१०।।

करें  सुखद योगात्म नित , पाएँ  निज  सौभाग्य।
करें  नियंत्रण  चपल  मन ,  अभ्यासी     वैराग्य।।११।।

योगेश्वर  सह पार्थ का ,  योगसूत्र     है    शक्ति।
योग राज हैं शिव स्वयं ,  पातंजलि  अभिव्यक्ति।।१२।।

जीतें  हम   गोलोक   को , योगबली    पुरुषार्थ।
शील त्याग गुण कर्म  से , हरिवंदन      परमार्थ।।१३।।

कवि निकुंज चंचल मनसि , फँसा मोह जंजाल।
हेतु  पाप मद  शोक जग ,  बचें बनें   खुशहाल।।१४।।

वर्धापन      शुभकामना ,  विश्व  भगाएँ    रोग।
स्वागत विश्व योग दिवस ,  करें मिलें सब योग।।१५।।


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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