सुमित्रानंदन पंत |
छायावादी महल का , स्तम्भोंं में सिरमौर।
प्रकृति का सुकुमार कवि , पंत दूसरा और।।१।।
ज्ञानपीठ भी धन्य था , देकर निज सम्मान।
पुलकित पा हिन्दी वतन , पूत पंत वरदान।।२।।
कोकिल भारत भारती , पंत श्रेष्ठ कविमान।
निर्माणक हिन्दी विधा, नव युग का आधान।।३।।
स्वर्णयुगी बन कवि प्रथम ,रचना शस्त्र प्रयोग।
गोरों के आधीन वतन , दी आज़ादी योग।।४।।
पद्म विभूषण भारती , कविता पुष्प पराग।
साहित्य मान अकादमी,पंत दिखा अनुराग।।५।।
है कृतज्ञ हिन्दी वतन , साहित्यिक अनुदान।
पंत सुरभि कवि कामिनी,महकें शुभ मुस्कान।।६।।
मेरा है शत्शत नमन , सुमित्रा नंदन पंत।
चारुचंद्र शीतल प्रकृति,माणिक कीर्ति अनन्त।।७।।
नमन करूँ मैं पंत को , श्रद्धा पुष्प प्रदान।
पाऊँ कहँ कवि पंत सम ,प्रकृति गंध मुस्कान।।८।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली