भीड़ लगी है मधुशाला मे - कविता - भरत कोराणा


भीड़ भरी भगदड़ है भारी
लोग खड़े मदिराआलय पर
उधर थार मे पानी नही है 
इधर दारू हित भीड़ लगी है। 
शर्म करो सिहासन वालों
गरीब हित तुम करते क्या हो
घर आंगन मे अन्न नही है
उधर दारू हित भीड़ लगी है। 
तुमरी बोली अमली झोला
मांग शासनहित बोतल बोली
बोली बोतल खोली बोतल
राहों मे मजदूर मर गए
उधर दारू हित भीड़ लगी है। 
वाह रे भूखों की भलाई
तुमने तो ठेके खुलवाये
पर मर रहे भूख से 
उनको क्यु नही घर पर लाये। 
अबकी यह है ढोंग दिखावा
ढोंग है सब यह नियम कायदे
छि है ऐसी खातिर दारी
जो बड़ा रही है भीड़ भारी
कहते लिखते शर्म आ रही 
मदिरालय पर भीड़ लगी है।

भरत कोराणा
जालौर (राजस्थान)

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