हम पलकें बिछाए संजोए थे सपने,
बेपहनाह ए मुहब्बत गाये तराने,
सज़ाये तुमने मुहब्बत,अनज़ान हम थे।
की तुमने बेवफ़ाई , बेकसूर हम थे,
ढा जख़्मों सितम तुम बेवज़ह कातिलाने,
सनम चाहे थे तुमको एतवार करके,
कसूर है हमारी ख़ुद के जख़्मों सितम के।
तुम थे मेरी चाहत , अमानत हो मेरे,
साजन चली मैं मिलेंगे अगले जनम में,
सदा खुश रहो दुनिया में महफ़ूज बन के,
बेकसूर तुम हो जिओ सपने जिंदगी के।
चली मैं सज़ाने ख़ुद आस्मां आशियां को,
मंज़िल जिंदगी की , पूरे होंगें सपने,
चलूँगी अकेले ख़ुद ढाल बनकर बचाने,
भूल सारी बेवफ़ाई जख़्मों गमों के।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली