राणा की वीर भुजा पर
बलिदान दिखाई देता था
चेतक के स्वामी भक्ति पर
अभिमान दिखाई देता था.
रण बन्कुर मे रण भेरी जब
कभी बजाई जाती थी.
राणा के संग चेतक की
पीठ सजाई जाती थी.
युध्द भूमि मे जब राणा
सिंहो से गरजा करते थे.
दुश्मन के ऊपर जब जब
वो मेघो से बरसा करते थे.
शत्रु देख राणा प्रताप को देख
पहले ही डर जाता था
पल भर मे राणा का भाला भी
छाती अड जाता था.
यूध्दस्थाल मे केवल तलवारो की
टंकार सुनाई देती थी .
कटते दुश्मन की मुण्डो की
चित्कार सुनाई देती थी
पवन वेग से तेज हमेशा
चेतक दौडा करता था.
उसके आने की आहट से
अरी दल रण थोडा करता था
राणा चेतक जब साथ साथ
जिस पथ पर निकला करते थे
अरी दल के अगणित सैनिक
मुर्छित हो जाया करते थे
रण बीच घिरे थे राणा
दुश्मन भी भौचके थे
देख चेतक की ताकत को
सब के अक्के बक्के थे.
युद्ध भूमि मे जब जब
शंख नाद हो जाता था
राणा के छवि मे मानो
कोई काल प्रकट हो जाता था
राणा का वक्षस्थल जिस
दिशा मे मुड जाता था.
चेतक उसी दिशा मे हिम
गिरि सा अड जाता था.
विश्व पटल पर तेरी चर्चा
अब हर कोई गायेगा.
चेतक की स्वामी भक्ति पर
जन जन शीश नवयेगा .
कवि गोपाल पाण्डेय आजादऔरैया उत्तर प्रदेश