महफिले-शब के सुहाने मंजरों को देखना - ग़ज़ल - मनजीत भोला


महफिले-शब के सुहाने मंजरों को देखना
आस्तीनों में छुपे जो खंजरों को देखना 

सब शरीफों की हक़ीक़त सामने आ जाएगी
मालिकों की बात करते नौकरों को देखना

किस तरह बर्बाद करती एक तरफा आशकी
मोम में लिपटे पतंगों के परों को देखना

कश्तियां मझधार में जब डूबती तुमको लगें
साहिलों पे मुस्कुराते रहबरों को देखना

गर कभी फुर्सत मिले तो रात में फुटपाथ पे
बिस्तरों को देखना तुम चादरों को देखना

क्या ग़ज़ब की कोठियां हैं क्या ग़ज़ब बुनियाद है
खाब जिनके हैं दफन उन बेघरों को देखना

जो अदब की बात करते मुफ़लिसी से जूझते
जेब भरते ऐश करते मसखरों को देखना


मनजीत भोला

कुरुक्षेत्र, हरियाणा

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