मैं माटी हूं - कविता - मयंक कर्दम


कांटो के आगोश में पला,
   फूलों में सोना चाहता हूं।
      मैं माटी हूं,
      माटी में मिलना चाहता हूं।।

 चांद अब दूर नहीं,
   दस्तक देना चाहता हूं।
      मैं माटी हूं,
       माटी से उड़ना चाहता हूं।।

चकोर नहीं अब कुछ भी आगे,
   मैं भी उड़ान भरना चाहता हूं ।
  मैं माटी हूं, 
   माटी से चांद छूना चाहता हूं।।

  बंद करो रोटी को छीनना,
    देश की *गरिमा* चाहता हूं।
      मैं माटी हूं,
     माटी से उड़ना चाहता हूं।।

कलम से बटोरना संसार मुझको,
  *गौतम* की शरण चाहता हूं। 
   मैं माटी हूं,
   माटी में मिलना चाहता हूं।।


मयंक कर्दम
मेरठ (उ०प्र०)

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