नूरे ग़ज़ल हो तुम मेरी, तुम ही बहार हो - ग़ज़ल - कवि कुमार निर्दोष


नूरे ग़ज़ल हो तुम मेरी, तुम ही बहार हो
दुनिया को मैं बता दूंगा, तुम मेरा प्यार हो

शेरों में है नजाकत, तेरे ही हुश्न की
मेरी हर इक कविता का तुम ही श्रृंगार हो

तुम चाँद से हो सुंदर, तारों की रोशनी तुम
कैसे ना ये दिल फिर, तुम पर निसार हो

हर इक जन्म में तुमको, अपना बनाऊँगा मैं
और इस जन्म का भी तो बस तुम ही सार हो

तुम पर शुरू तुम पर खत्म निर्दोष की कहानी
तुम ही हो मेरी मंज़िल, तुम ही इंतजार हो


कवि कुमार निर्दोष

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