कर्म - कविता - गौतम कुमार



देश के प्रति समर्पण हो मेरा ,
ना मुझमें कोई हो मर्म।
सफलता कदम चूमती है उनकी ,
जिनके अच्छे होते कर्म।।
ना बैर हो ना द्वेष हो ,
अंतर्मन की सब बात करें।
नेक कर्म है जिनके  ,
वो पीठ पीछे ना आघात करें।।
वसुंधरा की रक्षा करना ,
मनुज का है कर्म।
प्रदूषण फैलाकर इसने ,
वातावरण को कर दिया गर्म।
निकल पड़े संघर्ष क्षेत्र में ,
ना करना है विश्राम।
धीरे - धीरे ही सही
पर करेंगें देश हित में काम।।
सत्य को प्रकट करने में ,
ना करना कोई शर्म।
सफलता कदम चूमती है उनकी ,
जिनके अच्छे होते कर्म।।

गौतम कुमार
बारीचक , मुंगेर (बिहार)

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