कोरोना काल के संदर्भ में एक गीत - डॉ गोविन्द द्विवेदी


कोरोना के कठिन समय में सजग सभी को रहना है।
समरसता-समता  की धारा में जन-जन को बहना है।।

                 निजी स्वार्थ से ऊपर उठ,
                 जो जनसेवा  व्रतधारी हैं।
                 भारत  माता के   मंदिर के  
                  सच्चे  वही   पुजारी   हैं।।

 भूख-प्यास से  मरे न कोई  सत्ता  का भी  कहना है। 
समरसता-समता  की धारा में जन-जन को बहना है।।

                 कुछ लोगों की भूख बेबसी ,
                 कोरोना      पर   भारी     है ।
                 उनकी     चिंता    करने  की ,
                 हम  सबकी     जिम्मेदारी  है।।

 परहित है युगधर्म यही तो   मानवता  का गहना है ।
समरसता-समता  की धारा में जन-जन को बहना है।।

                     नगरों से भी गाँव-गाँव में ,
                     अभी  पलायन जारी हैं।
                     रोज कमाने-खाने वालों ,
                     में  कितनी   बेकारी  है ।।

जर्जर  तन,मन दुखी भूख से व्याकुल कोई उपहना हैै ।
समरसता-समता की  धारा में  जन-जन को  बहना है।।

                  छीन न  लेना  नौकरियाँ
                  वैसे  भी   बेरोजगारी  है ।
                  यही    नियोक्ताओं   की,
                  पूजा-अनुष्ठान-अग्यारी है।।

 साथी अब तो निर्बल जन पीर सबल को ही सहना है ।
समरसता-समता  की धारा  में  जन-जन को बहना है।।

डॉ गोविन्द द्विवेदी
(  प्रवक्ता,  संस्कृत महाविद्यालय ,औरैया )
सम्पर्क सूत्र - +91 9259475216

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