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विधा/विषय "शृंगार"
शृंगार या ग़ुलामी - कविता - प्रीति बौद्ध
सोमवार, मार्च 08, 2021
ग़ुलामी की ज़ंजीरों को नारी का शृंगार बनाया। सोलह शृंगार का नाम देकर नारी को मूर्ख बनाया।। सोचो केवल शादी औरत की ही होती है। जीवन भर क्य…
श्रृंगार - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
मंगलवार, जनवरी 19, 2021
उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊँ, वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ। लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली काली, फूलों …
श्रृंगार - मुक्तक - रूपा सुब्बा
शुक्रवार, मई 29, 2020
हाँ, मैं करती हूँ श्रृंगार, किसी के लिए नहीं बल्कि स्वयं के लिए श्रृंगार, क्या श्रृंगार के लिए ज़रूरी है किसी का साथ? क्या पू…