संदेश
मेरा किसान - कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
श्रम बिंदु बहता जाए, काम वह तो करता जाए। सर्दी, गर्मी या हो बरसात, मेहनत करता है दिन-रात। खेतों में वह अन्न उगाता, अन्न तभी हमें मिल प…
मेरे देश का मजदूर - कविता - हरिराम मीणा
मजदूरों की ताकत जानो, उनकी शक्ति को पहचानो। तुम खाते हो बिरयानी, वह क्या जाने पकवान को।। मत भूलो उनके वादे, वह होते हैं सीधे-साधे। खुद…
श्रम प्रेम - कविता - विनय विश्वा
ज्येष्ठ की तपती भरी दोपहरी श्याम सलोनी रुप सुनहरी माथे पे है पगड़ी धारी गुरु हथौड़ा हाथ है भारी। मुख मंडल की छटा निराली हर प्रहार है …
श्रम ही ईश्वर है - कविता - सुधीर कुमार रंजन
हां, आज़ सबके साथ, मैंने भी जश्न मनाए, खुशियों के गीत गाए, लड्डुओं के भोग लगाए, मिट्टी के भी दीप जलाए, पटाखे भी जमकर फोड़…
श्रमकर्मी - कविता - सौरभ तिवारी
हम श्रमकर्मी बढ़ चले हैं अपनी मंजिल पाने को, भले राह में कष्ट हजारों पीने को, ना खाने को। श्रमबिन्दु है, साथी अपना क्यों करें गु…
हाँ मैं श्रमिक हूँ - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ । समय का वह प्रबल मंजर , भेद कर लौटा पथिक हूँ । मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ। अग्निप…