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जाड़े के दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हैं जाड़े के दिन औ' ख़ूब प्यारी लग रही धूप। हैं तृप्त लगते तालाब, कुँए, झील। काला-काला कौआ लगता वकील॥ बेचती चूड़ी-बिंदी मनिहारी– लग…
शिशिर सुंदरी - कविता - सतीश पंत
नवल भोर संग धवल कुहासा शिशिर ओढ़ जब आई, वसुंधरा से शैल शिखर तक मेघावली सी छाई। शिशिर सुंदरी रूप मनोहर देख देह सकुचाई, शीत वायु के प्रब…
जाड़े का मौसम - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
सबको बहुत लुभाता है जाड़े का मौसम। महल, झोपड़ी, गाँव शहर हो। या फिर दिन के आठ पहर हो।। कभी कभी तो लगता है भाड़े का मौसम। कंबल, स्वेटर …
शीत ऋतु का आगमन - कविता - आशीष कुमार
घिरा कोहरा घनघोर गिरी शबनमी ओस की बुँदे, बदन में होने लगी अविरत ठिठुरन। ओझल हुई आँखों से लालिमा सूर्य की, दुपहरी तक भी दुर्लभ हो रही प…
शिशिर ऋतु - कविता - शुचि गुप्ता
चुम्बन गगन करे धरा, वीणा मधुर बजी, मृदु धूप में निखर नहा, दुल्हन प्रभा सजी। बन मीत प्रेम ऋतु शिशिर, है पालकी लिए, शुभ आगमन अनंग रति, र…
शीत - कविता - नंदिनी लहेजा
हो रही शांत अब तपन धूप की, हवाएँ पंख फहरा रहीं। रवि को है जल्दी वापसी की, निशा, शशि संग इतरा रही। गई वर्षा अपने घर वापस, अब शीतऋतु की …
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