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विधा/विषय "लोग"
कहने को लोग बड़े हो गए - कविता - गुड़िया सिंह
गुरुवार, अप्रैल 29, 2021
जैसे ही बचपन बीती, कहने को लोग बड़े हो गए। उँगली थाम कर गिरते सम्भलते थे, जब से हैं अपने पैरों पर खड़े हो गए, उम्र थोड़ी क्या बीती, संग ब…
लोग क्या कहेंगे - कविता - गोपाल मोहन मिश्र
शुक्रवार, मार्च 05, 2021
लोग क्या कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ? झूठी गिरह मन की बंधन के, बेवजह संकोच लिए फिरता हूँ मन में, अनिर्णय की स्थिति है, असमंजस में ब…
मानव-मन है अति मालिन, धैर्य खो रहे लोग - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
मंगलवार, जुलाई 07, 2020
मजबूरी कैसी बनी, हो अति दीन रो रहे लोग। मानव-मन है अति मलिन, धैर्य खो रहे लोग।। यह है कैसी महामारी, जिसे भोग रहे हैं लोग। अपनों…