मानव-मन है अति मलिन, धैर्य खो रहे लोग।।
यह है कैसी महामारी, जिसे भोग रहे हैं लोग।
अपनों ही के शव पाने के लिए, रो रहे हैं लोग।।
ना कोई दवा ना चिकित्सक, तड़प रहे हैं लोग।
स्वयं से लड़ते-लड़ते थके, फफक रहे हैं लोग।।
मुश्किल में शिशु, बाल, युवा, छोड़ रहे हैं लोग।
वृद्धों की है क्या बिसात, छूत समझ रहे हैं लोग।।
अपने ही अपनों से दूर, क्यूं कर रह रहे हैं लोग।
हो गए हैं अत्यधिक क्रूर, ऐसा कह रहे हैं लोग।।
लॉक लगा,ताली-थाली बजा, दिए जलाए लोग।
अब ना जाने किस कर्म की, सजा पा रहे हैं लोग।।
'विकल' जन-जन,तन-मन, वंदन कर रहे हैं लोग।
हे प्रभु ! कब छुटकारा मिले, क्रंदन कर रहे हैं लोग।।
अपनों एवं रिश्तेदारों के शवों को, रो रहे हैं लोग।
प्रशासन-अस्पतालों के हालात पर, रो रहे हैं लोग।।
दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)