लोग क्या कहेंगे?
यही सोचकर चुप रहता हूँ?
झूठी गिरह मन की बंधन के,
बेवजह संकोच लिए फिरता हूँ मन में,
अनिर्णय की स्थिति है, असमंजस में बैठा हूँ,
लोग क्या कहेंगे?
यही सोचकर चुप रहता हूँ?
घुट चुकी है दम प्रतिभाओं की,
ख़ुद को पूर्णतः कहाँ खोल सका हूँ,
पूर्णविराम लगी है, कपाल बंद किए सोया हूँ,
लोग क्या कहेंगे?
यही सोचकर चुप रहता हूँ?
सपने असंख्य पल रहे इस मन में,
शायद कवि महान बन जाता जीवन में,
शब्द घुमड़ रहे हैं पर, लेखनी बंद किए बैठा हूँ,
लोग क्या कहेंगे?
यही सोचकर चुप रहता हूँ?
ज्ञान का कोष मानस में,
अभिव्यक्ति मूक किए बस सुनता हूँ,
विवेचना की शक्ति है, पर चुप्पी लिए फिरता हूँ,
लोग क्या कहेंगे?
यही सोचकर चुप रहता हूँ?
चाहत खुशियों के पल की जीवन में,
खुशियों की लम्हों में कुछ कहने से डरता हूँ,
ज़िन्दा हूँ लेकिन, जीवन की लम्हों को यूँ खोता हूँ,
लोग क्या कहेंगे?
यही सोचकर चुप रहता हूँ?
गोपाल मोहन मिश्र - लहेरिया सराय, दरभंगा (बिहार)