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नारी सम्मान - कविता - ज़हीर अली सिद्दीक़ी
त्योहार नहीं, पहचान नहीं, घर के सीता का मान नहीं। वह सीता थी सती सदा, आज नज़रें सीता को घूर रहीं।। असत्य के साथ था भले खड़ा पर मर्यादा प…
विजय पर्व हो शान्ति का - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
परमारथ सुख शान्ति लोक में, यश विजय दीप आलोक कहूँ। विजयपर्व यह सत्य न्याय का, दशहरा या रामराज्य कहूँ। कलियुग के इस व…
विजय पर्व - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हम सब हर साल रावण के पुतले जलाते हैं विजय पर्व मनाते हैं, शायद मुगालते में हम खुद को ही भरमाते हैं। वो सतयुग था जब राम ने रावण को मार…
रावण - कविता - प्रीति बौद्ध
तुम हर बार किडनैपर रावण जलाते हो, और वर्तमान बलात्कारियों से रिश्ता निभाते हो। रोज हो रहे हैं बलात्कार, चारों तरफ है हाहाकार। बेटियों …
रावण ऐसे न जलता - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
रावण ऐसे न जलता दशहरे के मेलों में किसी एक ने पहचाना होता श्री राम को दस चेहरों ने ।। दम्भ और शक्ति के मद में ईश्वर का अस्तित्…
आज का रावण - कविता - राजीव कुमार
आज का रावण ज्यादा हाई-टेक है, वह आज भी राम की कुण्डली लिखता है। सीता को पहले से ही हर कर अंगिका बना बंदिनी बना देता है उ…