आज का रावण - कविता - राजीव कुमार

आज का रावण 
ज्यादा हाई-टेक है, 
वह आज भी राम की 
कुण्डली लिखता है।

सीता को पहले से ही
हर कर अंगिका बना
बंदिनी बना देता है 
उसकी ही वाटिका में। 

फिर अपनी अंगिका को
बनाकर राम की संगिका
कुरुप कर सीता की छवि 
बना देता है एक प्रवंचिका।

रावण कुछ नहीं भूला है 
न राम, न सीता, न जनक 
खुद नेपथ्य में बैठकर मज़ा 
लेता राम-सीता युद्ध का।

सीता त्यागती है राम को
नपुसंकता का उद्घोष कर 
त्रेता का पराजित रावण 
अट्टहास करता राम पर।

न अब युद्ध का झंझट
न ही अशोक वाटिका
उसने बदला ले लिया है
उस जनक से भी जिसके
स्वयंवर से वह लौटा था।

आज जनक बाध्य हैं 
अपने भवन में ही
रावण के समर्पिता
का  परिपालन करने
के  लिए।

आज राम नहीं
रावण का युग है
सब कुछ उसका
नियंता है वह राम का।

खड़ा राम निरूपाय 
निहारे शून्य गगन 
व्यर्थ, भग्न मन

उसकी कल की जीत 
बन गयी है अब हार
युग बदल गया है 
हारा खड़ा है राम।

राजीव कुमार - जगदंबा नगर, बेतिया (बिहार)

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