संदेश
मातु पिता बन्दहुँ सदा - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मातु पिता बन्दहुँ सदा, रखूँ स्मृति सम्मान। मातु ऋणी मैं हूँ विनत, स्नेहाशीष रसपान।।१।। मातु पिता सेवा बिना, मिले न ममता छाँव। बिन बिखर…
अनदेखा क्यों? - कविता - संजय राजभर "समित"
चंद लम्हें! माँ-बाप के पास बैठकर देखो वो सारी तकलीफें भूल जाते हैं। जब हम थके हुए घर आकर बच्चों से पूछ लेते हैं "मम्मी-पापा …
माता पिता के दायित्व - लेख - सुधीर श्रीवास्तव
आज के इस व्यस्त वातावरण और तकनीकी युग में माता पिता के लिए भी अपने दायित्वों का निर्वहन कठिन होता जा रहा है। बढ़ती महँगाई ने जीवकोपार्ज…
पिता - कविता - कपिलदेव आर्य
पिता धरती पर ख़ुशियों का फ़रमान है, पिता का साया नहीं हो, वो घर बेजान है! जिनके सरों पर पिता नामका आसमान है, उनके लिए दुनिया में…
माँ-पिता - कविता - कपिलदेव आर्य
वो कहते हैं कि मेरे चेहरे पर तेज़ भरपूर है, और मैं कहता हूँ, मेरे माता-पिता का नूर है! उन्हीं की दुआओं से चमकते हैं सितारे मेरे, …
मात-पिता भगवान - कविता - सतीश श्रीवास्तव
उनको धरती पर कहते हैं सारे लोग महान, जिनकी दृष्टि में होते हैं मात-पिता भगवान। स्वर्ग इन्हीं चरणों में बसता कहीं न जाएंगे, इतना प…