संदेश
यादों की बारात सजाऊँ - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
यादों की बारात सजाऊँ, बचपन फिर लम्हें जी पाऊँ। माता की ममता छाया तल, पा सुकून फिर से सो जाऊँ। बाबूजी भय से सो जाऊँ, किताब खोल स्वमन बह…
गाँव का बचपन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
गाँव में बीते बचपन का मुझे दृश्य दिखाई देता है, अपने गाँव का वो प्यारा मुझे स्वप्न दिखाई देता है। काँव-काँव कौओं की हमको सुबह सुनाई द…
यह कैसा बचपन? - कविता - गोकुल कोठारी
लगता है वो गुमसुम-गुमसुम उसे कभी न चहकते देखा न डाल-डाल फुदकते देखा हरफ़ उसको लगते बेमानी बस ढूँढ़ रहा कुछ दाना पानी इसी उधेड़बुन में वक़…
वह आज भी बच्चा है साहब - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
वह आज भी बच्चा है, नन्हा सा मासूम सा, वही जिसे कहते है लोग, कोरा सा काग़ज़ सा। मिला मुझे भगवान को, साँचे में ढालते हुए, नन्हें हा…
बचपन और गाँव - कविता - विजय कृष्ण
बचपन में गाँव हमेशा दस किलोमीटर दूर लगता था, न कम न ज़्यादा। एक तो बुद्धि दस वर्ष से ज़्यादा न थी और दूसरे दस का नोट बहुत बड़ा लगता था। …
खोया बचपन - कविता - सीमा वर्णिका
आ लौट चलें बचपन की ओर, जहाँ नहीं था ख़ुशियों का छोर। दिन-रात खेलकूद की ख़ुमारी, पढ़ाई कम और मस्ती पर जोर। वह ग्रीष्मावकाश होते थे वरदान,…
वो प्यारा बचपन - कविता - निकिता मिश्रा
वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है, यादो में तेरी खोया जा रहा है। वो ज़िद कर के कुछ भी माँग लेना, वो रूठ कर किसी से कुछ भी कह देना, ऐसा बचपन…