गाँव में बीते बचपन का
मुझे दृश्य दिखाई देता है,
अपने गाँव का वो प्यारा
मुझे स्वप्न दिखाई देता है।
काँव-काँव कौओं की
हमको सुबह सुनाई देती थी,
वृक्षों पर तोता मैना की
हलचल होती रहती थी।
कुहू-कुहू कोयल की बोली
सबके मन को भाती थी,
घर के आँगन में गौरैया
दाना चुगने आती थी।
गाय रंभा कर बछड़े
को अपने पास बुलाती थी
दूध पिलाकर बछड़े को
हमको अम्रत दे जाती थी।।
बैलों के गले की घंटी
सुबह सुनाई देती थी,
खेतों में जा रहे किसान
की बात सुनाई देती थी।।
गांव के मंदिर के शंख की
ध्वनि कानों में पड़ती थी,
भोर भये पनिहारिन की
पायल छम छम बजती थी।
सुबह-सुबह मुर्गे की बाँग से
नींद हमारी खुलती थी,
सूरज की ताज़ी किरणों से
नई उर्जा मिलती थी।
गाँव की कच्ची गलियों से
मिट्टी की ख़ुशबू आती थी,
ठंडी-ठंडी मस्त हवा
मन को शीतल कर जाती थी।
खेतों की हरियाली प्यारी
सबके मन को भाती थी,
आमों की अमराई की
छाँव सुहानी लगती थी।
दोस्तों की वो हँसी-ठिठोली
मन प्रसन्न कर जाती थी,
गाँव के प्यारे अपनेपन की
सीख सुहानी लगती थी।
शहर के कोलाहल से हमको
शांति सुहानी लगती है,
गाँव में बीते बचपन की
हमें याद सुहानी लगती है।
अखिलेश श्रीवास्तव - जबलपुर (मध्यप्रदेश)