संदेश
बढ़ते रहो पथिक सदा - कुण्डलिया छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
बढ़ते रहो पथिक सदा, धरि धीरज की डोर। स्नेह प्रेम ममता लिए, सबहिं रखो हृद कोर॥ सबहिं रखो हृद कोर, शान्ति संयम को धारो। सीखो सहना पीर, अ…
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन - कविता - मयंक द्विवेदी
चाहे सौभाग्य स्वयं हो द्वार खडे, चाहे कर्ता भी हो भूल पड़े, नहीं चाहता आसाँ हो जीवन, चाहे मग में हो शूल गढ़े। जो पत्थर होऊँ तो नींव मिल…
यह दीपक है इसे जलना ही चाहिए - कविता - उमेन्द्र निराला
देख बुराई अपने अंदर इसे मरना ही चाहिए, जीवन में फैला अँधेरा मिटना ही चाहिए, यह दीपक है इसे जलना ही चाहिए। लगी विचारों मे वर्षो की दीमक…
पथ सहज नहीं रणधीर - कविता - श्रवण सिंह अहिरवार
अपनी जीत पर अधिक उल्लास ना कर, मंज़िल अभी आगे है यह नज़र-अंदाज़ न कर, कर्तव्य पथ में बिखरे हैं शूल अनंत यह ध्यान धर, पथ सहज नहीं रणधीर ये…
जो सहज सुलभ हो - कविता - मयंक द्विवेदी
जो सहज सुलभ हो अमृत तो तुच्छ अमृत का क्यूँ पान करूँ इससे अच्छा तो विष पीकर विष का ही गुणगान करूँ कूल सिंधु के बैठे-बैठे क्यों मौजों का…
परीक्षा - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
आने से जिसके चढ़े बुख़ार, जाने से ख़ुशी का बढ़े ख़ुमार। होती दुखदायी है, जीवन में परीक्षा। ज़िंदगी में होना अगर तो, मिले न प्रगति का ज्…
बदलते हालात - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
अच्छी बातें अच्छी लगती, अच्छों का दे साथ। बुरे स्वयं मर जाएँगे जब, बदलेंगे हालात। पथ कहाँ कब एक रहा, रही हिलती-डुलती साख। सूरज आख़िर न…