नहीं चाहता आसाँ हो जीवन - कविता - मयंक द्विवेदी

नहीं चाहता आसाँ हो जीवन - कविता - मयंक द्विवेदी | Hindi Prerak Kavita - Nahin Chahta Aasaan Ho Jivan - Mayank Dwivedi
चाहे सौभाग्य स्वयं हो द्वार खडे,
चाहे कर्ता भी हो भूल पड़े,
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन,
चाहे मग में हो शूल गढ़े।

जो पत्थर होऊँ तो नींव मिले,
होऊँ काँटो में फूल खिले,
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन,
सहर्ष वरण संघर्षो का हार गले।

ना बनना चाहूँ मोती,
जहाँ सरिताएँ मीठी मृदुल बहे,
कंकड हो जाऊँ उस प्रपात का,
जहाँ धाराएँ तीव्र बहे।
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन,
जो फिर भी बन जाऊँ मोती,
तो गहरे खारे सागर के क्षीर तले।

ना बनना चाहूँ हीरा,
जो अहम के बीज जने,
फ़ौलाद बनु उस तपती भट्टी का,
चाहे जितनी भी चोट पड़े।
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन,
जो फिर भी बन जाऊँ हीरा,
तो मिल जाऊँ कहीं धूल सने।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos