संदेश
प्रेम - कविता - प्रेम ठक्कर
प्रेम नहीं सिमटता व्यक्ति में, सत्य है। प्रेम में विलीन होना निश्चित है, सत्य है। बीते कल की चिंताओं को भूलकर, उस प्रेम के समंदर में ग…
तुम साथ हो जाना - कविता - मेहा अनमोल दुबे
जब रंग अपनी छटा बिखेरें, तुम साथ हो जाना, जब नील गगन सफ़ेद रंग सजाए, तुम साथ हो जाना, अमलतास जब सफ़ेद पीले गुच्छों को धरती पर बिखेरें, …
एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और - ग़ज़ल - रोहित सैनी
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और, सोचा थोड़ा-सा इंतिज़ार, बस, और। भूल जाने में कौन म…
सब एक जैसी नहीं होती - कविता - संजय राजभर 'समित'
एक तरफ़ समर्पण था निष्कलंक, निष्छल असीम प्रेम था पर मेरे दिमाग़ में एक वहम थी एक बस छूटेगी तो दूसरी मिलेगी फिर कली-कली मॅंडराता हुआ बहु…
मुझे देखकर अब उसका शर्माना चला गया - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
मुझे देखकर अब उसका शर्माना चला गया, राह देखने वाला आज ज़माना चला गया। जैसे बच्चे जीते बेफ़िक्री में जीवन को, आज बुज़ुर्गों से उनका डर जान…
एक बार प्रिये - गीत - सुशील कुमार
तुझपे तन मन सब वारु मैं बस तुझको अपना मानू मैं जीवन की सारी ख़ुशियाँ कर दूँ तुझपे न्योछार प्रिये तू कह दे बस एक बार प्रिये तुझको मुझसे…
नि:शब्द - कविता - गौरव कुमार
आज वर्षों बाद मैं घर लौटा... माँ और बड़े लोगों से मिलकर अच्छा लगा। ख़ुशी इस बात की भी थी कि दिल की सारी बातें उसे कह पाऊँगा। उसे देखने …