नि:शब्द - कविता - गौरव कुमार

नि:शब्द - कविता - गौरव कुमार | Hindi Kavita - Nishabd - Gaurav Kumar. Hindi Poem About Love. प्रेम पर कविता
आज वर्षों बाद मैं घर लौटा...
माँ और बड़े लोगों से मिलकर अच्छा लगा।
ख़ुशी इस बात की भी थी कि
दिल की सारी बातें उसे कह पाऊँगा।

उसे देखने की चाह में मैं 
बहुत देर तक
अपनी खिड़की के पास खड़ा रहा,
पर ढलती शाम की तरह
मेरी उम्मीद भी धूमिल होती गई।

मुझे पता चला अब उसकी हँसी
किसी और के आँगन में गूँजती है,
संगिनी रूप में वो,
अब किसी और की ज़िंदगी बन चुकी है।

मैं जानता हूँ अब
मुमकिन नहीं है हमारा मिलना, 
शायद ईश्वर ने हमारी कहानी में
लिखा ही नहीं था ये पन्ना।

अब वो नहीं है... 
फिर भी आँखें उसे ढूँढ़ने को उठती हैं, 
घंटो उसकी खिड़की पर
एक टकटकी सी लगी रहती है।
कभी उसकी धुँधली सी परछाई मुझसे पूछती है–
“क्या इतनी देर सही थी!”
मैं निःशब्द! मूर्छित सा हो जाता हूँ।
और एक लंबी अंतर्मन की लड़ाई में खो जाता हूँ...!!

गौरव कुमार - पटना (बिहार)

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