संदेश
धरती का शृंगार मिटा है - कविता - राघवेंद्र सिंह
धधक उठी है ज्वालित धरती, जल थल अम्बर धधक उठा है। अंगारों की विष बूँदों से, प्रणय काल भी भभक उठा है। सूख गए हैं तृण-तृण सारे, दिग दिगंत…
मानसून का इंतज़ार है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
भीषण गर्मी उमस बढ़ी है मानसून का इंतज़ार है। छाया-धूप है सखी-सहेली। पानी और है गुड़ की भेली॥ भेड़ाघाट नर्मदा तट पर और वहीं पे धुँआधार ह…
क़हर ढा रहा आसमाँ - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
क़हर ढा रहा आसमाँ, बरस रही है आग। सर पे गमछा बाँध ले, जाग मुसाफ़िर जाग॥ जाग मुसाफ़िर जाग, बदन गर्मी से उबले। राति मसन की फ़ौज, सुनावै क…
ग्रीष्म - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है॥ दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द…
ऐ बादल! - कविता - नूर फातिमा खातून 'नूरी'
तपती धरती पर तरस खाओ ना, ऐ बादल! अब तो बरस जाओ ना। सूख रहें हैं सारे खेत खलिहान, है भीषण गर्मी शाम चाहे बिहान। पशु-पक्षी प्यासे फड़फड़…
आया महीना जून का - मनहरण घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
आया महीना जून का, सूरज उगले आग। चिलचिलाती धूप में, बाहर ना जाइए। गरम तवे सी धरती, बरस रहे अंगारे। आग के गोले सी लूएँ, ख़ुद को बचा…
तपिश - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
भयंकर तपिश के दरमियाँ, ये जो शीतल जल है। यही तो बस आजकल, जीने का सम्बल है। उफ़ ये जलती फ़िज़ाएँ, अंधड़ की डरावनी सदाएँ। ये आँधियाँ ये गर्म…