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हामर पेटेक आइगीं - खोरठा कविता - विनय तिवारी
हामर पेटेक आइगीं पोइड़ के बानी-छाय होय जाय हामर हिंछा, हामर बुधि हामर उलगुलान, हामर सोच हामर पेट आर माड़-भात। एकर बिचें हाड़तोड़वा काम ज…
पढ़ नुनू पढ़ रे - खोरठा कविता - विनय तिवारी
पढ़ नुनू पढ़ रे! आपन भबिस गढ़ रे! खाता-पोथी से नाता जोड़ मोबाइल देखे छोड़ रे पढ़ नुनू पढ़ रे... जे पढ़ल, आगु बढ़ल जिनगिक टुंगरी-पहार चढ़ल। सुख…
एइ भात रे - खोरठा कविता - विनय तिवारी
ने जाइत देखलों, ने पाँइत रे ने दिन देखलों, ने राइत रे हामें तोर लेल की की नॉय करलों एय भात रे! एइ भात रे!! काँटा अइसन छातीं लागल कते ल…
मिटे नायं दिहा माटिक मान - खोरठा कविता - विनय तिवारी
जखन हाम होसेक दुनियाएं डेग राखल हलों तखनी से तोर नारा, पोस्टर बैनर मीटिंग सिटिंग देख हलों आपन माटी, आपन भासा, आपन संस्कृति,आपन राइज के…
झारखंड के माटी - खोरठा कविता - विनय तिवारी
झारखंड के माटी दादा ,पूजे के समान रे, झारखंड राइज हामर देसेक सान रे, देसेक सान ऐ दादा, देसेक सान रे। देसेक सान ऐ बहिन देसेक सान रे॥ पह…
हामर पेटेक आइगीं - खोरठा कविता - विनय तिवारी
हामर पेटेक आइगीं पोइड़ के बानी-छाय होय जाय हामर हिंछा, हामर बुधि हामर उलगुलान, हामर सोच हामर पेट आर माड़-भात। एकर बिचें हाड़तोड़वा काम ज…
बिटिया करे सवाल - खोरठा कविता - रवि शंकर साह
बेटा होले कुल के दीपक । हम होलिये ज्योति गे माय। बेटा तो बदमाशों हो झे बेटी तो होवे झे एक गाय। दुनिया के ई केसन रीति रिवाज केसन झे इ स…
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