वह आलिंगन चौबीस साल पुरानी है - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
शनिवार, मार्च 01, 2025
कुछ गीली और चमकीली यादों में,
तुम मेरी स्वप्न सुंदरी,
मेरे सुनहले अतीत की नीली किरणें,
वह उम्मीद से भरी आँखें,
चाहना से भरी मटकती पुतलियाँ,
ज़रा रुको,
वह आलिंगन चौबीस साल पुरानी है।
इस लम्बे अंतराल में कितनी बार हारा,
कितना कुछ खोया,
पाया सिर्फ़ उदासी, विच्छोह, संताप,
तिरस्कृत हृदय रोया,
कितना कितना प्रेम खोया
दोस्ती छल की बाँसुरी बजाया
यारियाँ गृहस्ती में दब गई।
अब नहीं रहे चमकते हुए तारे,
न सुबह की मखमली किरणें
न कुलाँचे भरती मन की हिरणे।
सुख गई नदियाँ,
फुल कुम्हलाने लगे खिलने से पहले,
हवा ज़हरीला हो गया,
धरती से नमी चली गई,
पानी भी अब साबूत नहीं बची
चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई,
रीढ़ की हड्डी में दरारें आ गई है,
अंधेरा और गहरा गया रौशनी के विरुद्ध।
हे प्रिय!
फिर भी तुम कितनी कोमल और साहसी हो
कि अब भी मुझे प्रेम करती हो
जैसे पानी बहाव से करता है
चौबीस साल पुरानी वही आलिंगन ढूँढ़ती हो,
और प्रसन्न हो कि तुम उसे हासिल कर लोगी।
मैं तुम्हे विचित्र आँखों से देखता हूँ
संदेह से
अविश्वास से
प्रिय मेरी चाहना
कि तुम्हारे हृदय में हर बार जन्म लेता रहूँ
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