नंदनी खरे 'प्रियतमा' - छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)
कविता मेरी - कविता - नंदनी खरे 'प्रियतमा'
रविवार, अक्टूबर 20, 2024
व्यस्त तुम्हारा मन, एक व्यथित कविता मेरी,
सह सूत्र में बंधे से तुम, जैसे गणित कविता मेरी।
तुम आनंद में रंग जाओ, नामित कथित कविता मेरी,
चंचलता में शांत तुम, आत्मकल्पित कविता मेरी।
तुम धीरज में मतवाले से, जैसे हो बधित कविता मेरी,
तुम डूबे-डूबे से इसमें, एक त्वरित कविता मेरी।
सूखे सूखे भावों में भी, सुंदर हरित कविता मेरी,
कुछ तुम हो मेरी कविता जैसे, कुछ तुम सहित कविता मेरी।
सुनो कविता सुनने वालों, तुम पर अर्पित कविता मेरी,
हर्षित हो उठते हो तुम, सुन द्रवित कविता मेरी।
तुम शांत, मैं भी शांत, तुम में चर्चित कविता मेरी,
स्तब्ध यही मैं और तुम, तुमसे गर्जित कविता मेरी।
तुम्हारे मौन को गाती, करती स्वरित कविता मेरी,
तुम्हारा स्वयं सुनाती है, हर एक रचित कविता मेरी।
नव सूर्य, नवसुरा पानी-सी, है नव उदित कविता मेरी,
जग भ्रमण कर देना, जो लगे उचित कविता मेरी।
तुम पर बोल देती है, तुम्हें करती आकर्षित कविता मेरी,
भावहीन भावों को भरती, करती आनंदित कविता मेरी।
तुम सुनो या गाऊँ मैं, है तुम्हारे हित कविता मेरी,
सुनो कविता सुनने वालों, तुम्हें कहती नित कविता मेरी।
माना थोड़ी चंचल है, यह लंबित कविता मेरी,
तुम्हें तुम कर देती है, तुममें आश्रित कविता मेरी।
बेरंगी बाहों में भी, है अभिरंजीत कविता मेरी,
कुछ मन ही मौन है, कुछ अपठित कविता मेरी।
कुछ परिवर्तित, कुछ नवनिर्मित, कुछ है विचलित कविता मेरी,
किंतु तुम्हें सुना सुना कर, है प्रफुल्लित कविता मेरी।
केवल तुमसे थोड़ी-सी है, आरक्षित कविता मेरी,
तुम्हारे लिए अभी अज्ञात बची है, कुछ अरचित कविता मेरी।
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