अमर प्रेम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

अमर प्रेम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव | Prem Kavita - Amar Prem | अमर प्रेम पर कविता, Hindi Poem on Immortal Love
यह प्रेम अमर, अडिग, अविरल,
तेरे नाम में समर्पित जल,
यह दीप सदा जलेगा प्रिय,
तेरे स्मरण का होगा फल।

मिट्टी से उठा यह आकाश,
तेरे चरणों का हो विश्वास,
यह श्वास तेरे गीतों में,
बहेगी जैसे शांत प्रवाह।

कभी न विचलित, कभी न क्षीण,
यह प्रेम अटल, यह हृदय दीन,
सृष्टि के हर कण में है बसी,
तेरे लिए यह धरा अधीन।

जैसे बूँद सागर में समा जाए,
तेरा नाम हृदय में बस जाए,
कभी ना टूटे ये बंधन,
सदा ही प्रेम तुझसे जुड़ जाए।

जैसे सूरज संग दिन का मेल,
वैसे ही तू संग मेरा खेल,
इस प्रेम में है आकाश का विस्तार,
जिसमें समाई सारी ये धरा अपरंपार।

तेरा नाम ही अब मेरी धड़कन,
तुझसे ही जीवन का हर अर्पण,
सजीव है, दिव्य है यह प्रेम,
जग में गूँजे तेरा ही स्वर हर क्षण।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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