कवि का जीवन रच जाओगे - कविता - राघवेंद्र सिंह
गुरुवार, अक्टूबर 24, 2024
पथ चुनकर करके लक्ष्य अटल,
पग तुमने ज्यों आरम्भ किया।
निज ग्रंथि विषों से विष-वर्षण,
विषदंतों ने प्रारम्भ किया।
इस दुर्गम पथ पर हे मानव!
आवरण बनाना भूल गए।
अपने ही लक्ष्य को पाने को,
प्रावरण लगाना भूल गए।
हैं यहाँ सभी निर्मम, विहीन,
शायद तुमको यह ज्ञात नहीं।
हैं छल उपाधि से उद्बोधित,
सब अपने हैं अज्ञात नहीं।
अपनों के विषमय बाणों से,
तुम किंचित ही बच पाओगे।
बच गए यदि तो तुम कवि हो,
कवि का जीवन रच जाओगे।
ये अपने तुम पर हैं हावी,
हैं रक्त पिपासा लिए हुए।
कंटक से पथ कर अवरोधन,
विष-बाण तराशा लिए हुए।
हैं काल क्रोध से भरे हुए,
मानो भुजंग सा फन इनका।
पथ को करने को विफल स्वयं,
है क्रोधित-सा तन-मन इनका।
पग बढ़े तुम्हारे हे मानव!
किन्तु सब लगे गिराने को।
सब जीत हार बस तुझमें है,
गिरकर भी स्वयं उठाने को।
यदि फिर उठकर आगे बढ़ना,
है सत्य यही दोहराओगे।
बच गए यदि तो तुम कवि हो,
कवि का जीवन रच जाओगे।
तुमको है जीत स्वाद चखना,
तुम भय का त्याग करो मानव।
हर पल एक कठिन परीक्षा है,
हर पल ही सम्मुख है दानव।
तुम उठो लक्ष्य संधान करो,
अन्यथा काल तुम्हें धर लेगा।
तुम अर्जुन हो हर समर-भूमि,
हर क्षण अपनत्व ही छल लेगा।
तुमको हे मानव ही अपने!
निर्लज्ज भाव से देखेंगे।
तुम हार चुके होगे सबकुछ,
हर क्षण दुर्योधन रोकेंगे।
यदि दुर्योधन से जीत गए,
तो ध्वजा जीत लहराओगे।
बच गए यदि तो तुम कवि हो,
कवि का जीवन रच जाओगे।
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