जन-जन के आराध्य राम हो गए - कविता - मयंक द्विवेदी

जन-जन के आराध्य राम हो गए - कविता - मयंक द्विवेदी | Shri Ram Kavita - Jan Jan Ke Aaradhya Ram Ho Gaye - Mayank Dwivedi | भगवान श्री राम पर कविता
कौशल्या के लाल,
रघुकुल भाल,
जनक दुलार,
कैसे षडयन्त्र का शिकार हो गए,
अपने ही घर बेदख़ल निकाल हो गए।
शबरी के राम,
केवट प्रणाम,
करे बार-बार,
ऐसे अहिल्या उद्दार,
करनार भगवान,
कैसे मर्यादा के राम पर सवाल हो गए,
आस्था पर कैसे अत्याचार हो गए।
रामायण गान,
रामचरित गुणगान,
राम सेतु के निशान,
जनम के नाम,
मरण राम नाम,
अभिवादन प्रमाण,
हृदय के वासी,
अजर अविनाशी,
ऐसे हृदय के राम,
जन-जन मान,
के अस्तित्व पर घमासान हो गए,
कितने कार सेवक बलिदान हो गए।
सरयू के तट,
चित्रकूट वन वट,
लक्ष्मण अनुज,
भर भरत नयन,
करुण हृदय हनुमान भी,
पुकार-पुकार शर्मसार हो गए,
चौदह साल के मिले वनवास,
कैसे पाच सौ साल तिरस्कार हो गए।
आए अब राम,
अवध के धाम,
लक्ष्मण सीता संग हनुमान,
देखो द्वार-द्वार दीवाली से त्यौहार हो गए।
घट-घट में प्राण,
मानो लौट गए आज,
जाग गए भाग,
रोम-रोम राम-राम हो गए,
रट राम नाम जन-जन के आराध्य राम हो गए।


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