अश्रुमय जीवन - कविता - प्रवीन 'पथिक'
मंगलवार, जनवरी 16, 2024
आज कल मन बहुत उदास है!
शायद! कुछ भी नहीं मेरे पास है।
दर्द रुलाता है, ऑंखें भर आती हैं,
उदासी फिर भी नहीं जाती है।
सपनें नहीं टूटे, टूट गया मैं ही,
हारे पथिक सा लूट गया मैं भी।
लोगों की बातें दिल में अब नहीं चुभती,
कुछ भी कर लूॅं, राहत सी नहीं मिलती।
जीवन का प्रकाश अब खो चुका हूॅं,
ऑंखें हृदय के ऑंसू रो चुका है।
ऐसा नहीं, तुम मेरे पास नहीं,
हृदय में अब कोई जज़्बात नहीं।
दर्द सीने में उभर चुका है,
हौसला जीते जी मर चुका है।
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