आश - कविता - वृन्दा सोलंकी

आश - कविता - वृन्दा सोलंकी | Hindi Kavita - Aash - Vrunda Solanki. Hindi Poem On Hope. आश पर कविता
तारे देखो अँधेरी रात के
उन्हें पता है अँधेरा है पास में
फिर भी वो चमकते है
उजाला देने की आश में

फूलो को देखो बाग़ में
मुरझा जाएँगे समय की माँग में
फिर भी खिलते है
ख़ुशबू देने की आश में

कुदरत को देखो सामने
रहती है वर्तमान में
पता है सबकुछ अंत है
फिर भी चलती है चलते
रहने की आश में

वृन्दा सोलंकी - जूनागढ़ (गुजरात)

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