हम बेकार ही तलाशते रहे रंगों को आसमाँ में,
नज़र नीचे हो भी जाए
तो भी ना जाती,
कद से नीचे के जहान में,
खड़ी थी एक दिन,
बैरंग अकेली सी,
नज़रें नीची,
ख़ाली परेशाँ मैं,
मुस्कुरा दिया मुझे देख
शाद में छिपा ये छोटा सा फूल
बोला एक रंगीन दुनियाँ ज़मीन पर भी बसती है,
ग़ौर फ़रमाओं ज़मीनी रंगत पर
क्या पता जो मिल ना सका,
ऊपर आसमाँ में
वो मिल जाए पैरो के नीचे दबे जहान में।
निवेदिता - डूंगरपुर (राजस्थान)