अब के बरस भाई तुम आना,
बहना के घर द्वार।
राखी की तुम लाज बचाना,
भूल न जाना प्यार।
नहीं चाहिए धोती-साड़ी,
न कोई उपहार।
भैया मैं तो माँगू तेरी,
ख़ुशियों का संसार।
मैं बाबुल के आँगन की,
थी चहकती चिड़िया।
अब यादें उर में सँजोती,
सुन प्यारे भैया।
दुख की बदली जब-जब छाई,
थे तुम मेरे पास।
जीवन है मेरा एकाकी
तुम्हीं हो मेरे आस।
मायके की डोरी है राखी,
छिपा है जिसमें प्यार।
साल में आता एक बार ही,
बहनों का त्यौहार।
दीपा पांडेय - चम्पावत (उत्तराखंड)