राखी का त्यौहार - कविता - कमला वेदी

राखी का त्यौहार - कविता - कमला वेदी | Rakshabandhan Kavita - Raakhi Ka Tyohaar - Kamla Vedi | रक्षाबन्धन पर कविता, Hindi Poem On Rakshabandhan
भाई बहिन का कैसा अनूठा ये प्यार,
भैय्या तू तो हर बहना का आधार।
मायका जब तक मात पिता रहते,
उनके बाद तू ही निभाता घर संसार।

भाई बहिन का कैसा अनूठा ये प्यार,
भैय्या तू तो हर बहना का आधार।

न तुझसे धन दौलत चाहिए,
न चाहिए महँगे उपहार।
तू भैय्या सदा ख़ुश रहना,
मैं तो माँगू बचपन सा प्यार।

अबके मैं न आ सकूँ तो तू आना द्वार,
भैय्या तू तो हर बहना का आधार।

राखी त्यौहार अति मनभावन,
सबसे प्यारा सबसे पावन।
युगों-युगों तक आता रहे भैय्या,
ये पूर्णिमा राखी का सावन।

कुछ न लाना, लाना बचपन सा प्यार,
भैय्या तू तो हर बहना का आधार।

फिर से तू लड़ना झगड़ना,
पहले की तरह चोटी खींचना।
लुका छिपी के खेल में भैय्या,
पर, तुम मुझे अब न सताना।

मैं सह न सकूँगी छुपने-छुपाने का भार,
भैय्या तू तो हर बहना का आधार।

अबकी बार भाभी को लाना,
कुशल अपनी दे, मेरी ले जाना।
कुछ कहनी सुन जा रे भैय्या,
कुछ अपनी बातें सुना जाना।

खाली नहीं भैय्या ये रेशमी राखी का तार,
ये तो अनमोल धागा, पावन ये त्यौहार।
                  
कमला वेदी - खेतीखान, चम्पावत (उत्तराखंड)

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