प्रेम - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'

प्रेम अर्पण है, समर्पण है,
अनुशासन का दर्पण है।
जीवन का संचालन है,
प्रेम आज्ञा का पालन है।

प्रेम अनुरिक्ति है,
प्रेम ही विरक्ति है।
सबसे बड़ी शक्ति है,
प्रेम ईश्वर भक्ति है।

प्रेम बिन सब आधा है,
कृष्ण बने राधा है।
प्रेम में संयोग है,
प्रेम में वियोग है।

प्रेम ऊँचा मचान,
खो देता पहचान।
प्रेम इतना महान,
मीरा करे विषपान।

आरती है स्तुति है,
अरदास की प्रस्तुति है।
घण्टा ध्वनि गुंजान है,
प्रेम भोर की अज़ान है।

प्रेम बिना सब अधूरा,
न भक्त न भगवान पूरा।
प्रेम में आनन्द है,
प्रेम सच्चिदानंद है।

सतीश शर्मा 'सृजन' - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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