सुनील माहेश्वरी - दिल्ली
मानसिक तनाव - आलेख - सुनील माहेश्वरी
शनिवार, सितंबर 17, 2022
अधिकतर तनाव का मुख्य कारण काम का समय से पूरा नहीं करना होता है, जिससे हमें मानसिक तनाव होता है, हमें अवचेतन मन में पता होता है कि हमें अमुक काम करना है, या करके देना है, फिर वो चाहे घर का हो या कार्य क्षेत्र का। लेकिन हम अपनी आदतों से मजबूर, जिनको ज़्यादातर काम को टालने की आदत होती है, काम का पूरा ना होने का रोना रोते रहेंगे, पर समय से पूरा नहीं करेंगे।
और वही तनाव का कारण बनती है। जबकि सबको पता होता है कि ये कार्य समय अवधि में करना है, और वही काम का पूरा ना होना हमारे दिल और दिमाग़ पर हावी होता जाता है। जो मानसिक तनाव बढ़ाता है।
दूसरा तनाव हमें अपनी शारीरिक परेशानियों और रोगों को लेकर होता है, जब हम अनावश्यक ही बीमारियों और लक्षणों को सोच-सोच कर अपने शरीर और दिमाग़ का दही बनाते रहते हैं कि कहीं मुझे कैंसर तो नहीं हो गया, कहीं मुझे डायबिटीज, थायराइड तो नहीं हो गई, आदि आदि। ज़रूरी है कि अगर तनाव हो रहा है किसी बीमारी की आशंका को लेकर तो जाकर ज़रूरी रक्त जाँच या रेडियोलॉजी जाँच करवाएँ। पर नहीं, बैठे-बैठे कूप मंडूक की तरह बीमारी से या दर्द से परेशान रहेंगे पर जाकर जाँच नहीं करवाएँगे। अनावश्यक तनाव पैदा करते रहेंगे। जो इनके दिल और दिमाग़ दोनों को तनाव देता है।
तनाव और बीमारी का वहम करने से अच्छा है कि जाकर ज़रूरी जाँच करवाएँ ताकि वहम का इलाज हो सके।
बहुत से केस में पैसे की कमी तनाव का मुख्य कारण बनती है, इसमें भी दो कैटागिरी के लोग हैं, एक वो जिन्होंने सोच लिया है कि हम तो ग़रीब हैं हमारे पास पैसा कहाँ से आएगा, इन्होंने अपनी सोच और सपनों को मार लिया है कि जितनी चादर उतना ही पैर फैलाओ। पर ज़िन्दगी में पैसे के अभाव का तनाव है, लेकिन संकुचित सोच के कारण तनाव में जीना सीख लिया है और संतुष्ट हैं।
दूसरी ओर महत्वाकांक्षी लोग जिनके सपने और आशाएँ आसमान छूने जैसी है पर पैसे का अभाव तनाव पैदा करता है, तो ये लोग सब कुछ जानते हुए भी ग़रीब बनकर रहना चाहते हैं, जबकि ज्ञात है कि ग़रीब पैदा होना बुरा नहीं, पर पढ़े लिखे और कुशलता, बुद्धि से परिपूर्ण होकर भी उसी में जीना कहाँ तक तर्कसंगत है। उसके लिए जो ज़रूरी है मेहनत, लगन, प्लानिंग, कौशल, दृढ़ता की वो ये लोग होते हुए भी करते नहीं और यही उनकी महत्वाकांक्षा तनाव का कारण बनती है।
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