यादें - कविता - जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद'

है तू नाराज़ तो ये भी सही है।
इसी बहाने यादें तेरी आई,
यादें जो कई है।।
लेकिन, बताया नहीं क्यों नाराज़ है,
ये भी अच्छा है, छिपा रहे राज़ है।
क्योंकि
ना जाने कौन कब प्यारा बन जाए,
ना जाने कौन कब बेसहारा बन जाए।
ज़िन्दगी में यही बड़ी कसौटी है,
हार गया जो, क़िस्मत उसकी खोटी है।
होना नाराज़ तेरा यही कह जाता है,
मन है पर बावला रोए-रोए जाता है।
फिर भी नख़रा तेरा ये फबता है,
चाँद की किरण पर
इतना ग़ुस्सा जो जचता है।
क्योंकि
सुना होगा तूने क़िस्सा ये पुराना,
बिगड़ जाए साज तो गुनगुना लो नया तराना।
दिल तेरे ने भी यही सुना होगा,
नए सफ़र का नया हमसफ़र चुना होगा।
लेकिन, पीछे मैं भी नहीं,
बसा ली नई दुनिया कहीं,
तू नाराज़ है, नाराज़ ही सही।
इसी बहाने आ जाती है यादें,
यादें राज़ ही सही।।

जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद' - छावनी टोंक (राजस्थान)

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