प्रभु छोड़ न देना साथ मेरा - गीत - गोकुल कोठारी

चाहे फूल दो मुझको या काँटे, प्रभु छोड़ न देना साथ मेरा।
बड़ी दूर तलक ये जीवन पथ, प्रभु छोड़ न देना हाथ मेरा।

ज़ख्म भले ही टीसें प्रभु रहना तुम मुस्कानों में,
प्रभु देना इतनी आस मुझे मैं डटा रहूँ तूफ़ानों में।
मुझे ऐसे महल की चाह नहीं, जहाँ तनती श्याम तेरी भृकुटी,
मेरे संग विराजो तुम, मैं चाहूँ ऐसी पर्णकुटी।
चाहे फूल दो मुझको या काँटे...

संघर्षों की ज्वाला में तपकर कर्म प्रधान बनूँ,
सत्पथ का संकल्प बनूँ मैं जटिल नहीं निदान बनूँ।
तुम मेरी वो अग्नि बनो जिसमें निखरूँ मैं कुंदन बन,
प्रभु मेरे ललाट विराजो तुम लेपित शीतल चंदन बन।
चाहे फूल दो मुझको या काँटे...

जब सूझे नहीं कोई राह मुझे, तब जुगनू बनकर साथ चलो,
संघर्षों की घोर तपिश में शीतल एक छाँव बनो।
धन दौलत की चाह नहीं, पर मन मेरा निराश न हो,
मेरे सर पर हाथ धरो प्रभु, कम मेरा विश्वास न हो।
चाहे फूल दो मुझको या काँटे...

गोकुल कोठारी - पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)

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