राखी लाई बहन तुम्हारी
अमर रहे यह रक्षा बंधन।
पुण्य और परमार्थ इसी में
केवल अपना प्यार मुझे दो।
कच्चे धागे की राखी ये
चाहूँ मैं आभार मुझे दो।
जलती रहे ज्योति जीवन की
अपना उर आगार मुझे दो।
रक्षा सूत्र बाँधती हूँ मैं
भइया मेरा शत अभिनंदन।
धन की चाह नहीं है भ्राता
संकल्पों की यही निशानी।
है जीवन्त नेह दोनों का
पुरुषार्थी बन गढ़ें कहानी।
रक्षा सूत्र कलाई बाँधूँ
केवल जीवन ज्योति जलानी।
मेरे भइया बन कर यशधी
महको जैसे सुरभित चंदन
सपथ ले रहा हूँ बहना मैं
संग तुम्हारे जीवन मेरा।
त्यागमयी रक्षा बंधन पर
सदा लगाऊँगा मैं फेरा।
इस जीवन की परिधि तुम्हारी
सुन पुकार तोड़ूँगा घेरा ।
चाह 'अंशुमाली' छू लो तुम
लक्ष्य, यही है प्रभु का वंदन।
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)