आराधन श्री कृष्ण का - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

हे! अर्जुन के सारथी, हे! गिरिधर गोपाल। 
नंदलाल यशुमति लला, राधा प्रीत निहाल॥ 

कृष्ण लाल प्रिय राधिका, प्रथम प्रीत मनमीत। 
युवा वयसि सखि रुक्मिणी, कहाँ मुरलिया गीत॥ 

तुम से तुम का मधु सफ़र, राधा मोहन प्रीत। 
तरसी मुरली श्रवण को, मुरलीधर संगीत॥ 

नवयौवन केशव वयस, शौर्य नीति रत योग। 
धर्म न्याय परमार्थ पथ, कहाँ प्रीत संयोग॥ 

खल कामी दानव अनघ, मारा मातुल कंस। 
मूढ़ खली शिशुपाल को, किया पूतना ध्वंस॥ 

तज वृन्दावन बालपन, लीलाधर तज मोह। 
कृष्ण चले पुरुषार्थ पथ, धर्मयुद्ध आरोह॥ 

लोक स्वस्ति रक्षण जगत, सत्य न्याय बन सार्थ। 
नारी रक्षण पथ सतत, मीत बना रथ पार्थ॥ 

धर्मयुद्ध कुरुक्षेत्र में, चतुर्योग उपदेश। 
कर्मयोग जीवन सफल, दिया ज्ञान ऋषिकेश॥ 
 
नश्वर तन धन लोक में, क्यों करते हो शोक। 
लाया क्या जो खो गया, कर्म अमर आलोक॥ 

राजनीति बस ध्येय जग, परमारथ धर्मार्थ। 
मानवता नैतिक रथी, समझ यही पुरुषार्थ॥ 

मन नटखट द्रुतगति चपल, निग्रह नित अभ्यास। 
तज भौतिक सुख मोह से, आत्मबोध आभास॥ 
 
सर्व पाप अधिराज मन, प्रोत्साहक नित चाह। 
छल प्रपंच हिंसा कपट, रोग द्वेष गुमराह॥ 

वशीभूत कर मन मनुज, भक्ति प्रीति हो ज्ञान। 
राजयोग निष्काम मन, मिले कीर्ति सम्मान॥ 

मधुसूदन उपदेश से, तजे मोह मन पार्थ। 
जागा फिर पुरुषार्थ मन, चलो मीत रथ सार्थ॥ 
 
मन मुकुन्द नायक जगत, दामोदर जगदीश। 
गोवर्धनधारी किसन, शान्तिदूत अवनीश॥ 

सर्जक पालक कृष्ण जग, खलहन्ता विघ्नेश। 
अवतारी द्वापर हरि, कृष्ण देव मथुरेश॥ 

अमन शान्ति मन भावना, बने कृष्ण रणछोड़। 
जरासंध खल दनुज से, नहीं किया गठजोड़॥ 
 
पांचजन्य अनुनाद रण, चक्रपाणि विख्यात। 
मोर मुकुट घनश्याम प्रभु, हरे त्रिविध आघात॥ 

यादवेन्द्र निर्मेष हरि, जगन्नाथ अभिराम। 
भक्ति प्रीति राधा रमण, वासुदेव सुखधाम॥ 

बसे द्वारिकाधीश मन, रंगनाथ अविराम। 
बालाजी मधुवन मुदित, बद्रीनाथ सुनाम॥ 

दिवस जन्म श्रीकृष्ण की, चलें मनाएँ आज। 
पावन उत्सव धरा का, प्रीति भक्ति आगाज़॥ 

आराधन श्री कृष्ण का, राधा रानी गान। 
गाएँ गीता गान हम, कृष्णचन्द्र वरदान॥ 


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