प्राचीन लिपियाँ - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'

आइए आज हम प्राप्त करे प्राचीन लिपियों का ज्ञान।
प्राचीन काल में अनेक लिपियाँ बढ़ाती थी भारत की शान।
प्राचीन बौद्ध ग्रंथ ललित-विस्तर में 64 लिपियाँ थी विद्यमान।
इन विशिष्ट लिपियों ने ही दिलाई भारत को नई पहचान।
ब्राह्मी, खरोष्ठी, पुष्कर, सारी, अंग लिपि थी बड़ी महान।
बंग, मगध, मांगल्य, मनुष्य लिपि की थी अपनी शान।
अंगुलीय, अनुलोम, शकारी और ब्रह्मवल्ली लिपि का ज्ञान।
द्राविडि, कनारी, दक्षिणी और उग्रलिपि की थी अपनी पहचान।
संख्या, ऊर्ध्वधनु, दरप, खास्य ने ख़ूब बढ़ाई थी शान।
चीन, हूण, मध्याक्षर,विस्तर, पुष्प भी थी बड़ी महान।
देव, यक्ष, गंधर्व, नाग ने भी दी थी भारत को नई पहचान।
किन्नर, महीरग, असुर, गरूड़, थी सभी लिपियों में महान।
मृगचक्र, चक्र, वायु, भौमदेव से बड़ी थी हमारी शान।
अंतरिक्ष, देव, उसर, कुरुदीप, अपर गौड़ादी का था ज्ञान।
पूर्व विदेही, उत्प्रेक्ष, निक्षेप, विक्षेप, प्रलेप का होता था गुणगान।
सागर, व्रज, लेख, प्रतिलेख, अनद्रत लिपि ने भी बढ़ाया ज्ञान।
शास्त्रावृत, रानावृत, उत्क्षेपावृत, विक्षेपावृत, थी बड़ी महान।
पादलिखित, द्विरूत्तर, पद संधि लिखित ने भी बढ़ाया मान।
दशोसर पद, संधि लिखित, विमिश्रित,सर्वरूतसंग्रहणी का था ज्ञान।
विद्यानुलोम,अध्यहरिणी, ऋषित, पस्तप्त की थी शान।
धरनी, प्रेक्षणी, सर्वेष, निष्यनन्द, सर्वसार, संग्रहणी की थी अलग पहचान।
सर्वभूत, रूद्रग्रहणी सभी लिपियों में पाती थी असीम सम्मान।
इन 64 लिपियों से ही मिली थी भारत वर्ष को विशिष्ट पहचान।
हम सब मिलकर जाने इन्हें और बढ़ाएँ हम सबका ज्ञान।
जिससे बढ़े हमारे देश का संपूर्ण विश्व में अथाह सम्मान।
गर्व करे हम हमारे देश पर और पुनः दिलाए इसे विश्व गुरु की पहचान।

डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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