सागर किनारे - कविता - अनिल कुमार

एक शाम
अकेले हम-तुम
बाँहो में बाँहें डाले
एक-दूजे के संग
आओ, साथ चले
सागर किनारे
मेरे जीवनसाथी-हमदम
एक संध्या
सागर किनारे
रेत पे चलते है पैदल-पैदल
उठती-गिरती लहरें
मन से मिलता हो मन
दूर कहीं सागर के
शांत क्षितिजपथ पर
ढूब रही, देखो 
सूरज की अंतिम किरण 
संध्या की लाली
सागर में लहराती
हल्की उजली सिंदूरी
बल खाती लहरें, सुन्दर स्वर्णिम 
सूरज उतर रहा, देखो
मंद-मंद गति-शैली से 
अस्ताचल पथ पर
धीरे-धीरे, सिंधु के अन्तर्मन
तट की चमकीली रेती में
होता हो जैसे
प्रेमी का प्रेमी से
प्रेम का मधु आलिंगन
हाथों में हाथ पकड़
सागर किनारे
आओ, साथ चले हम-तुम
बाँहों में डाले बाँहे
सागर किनारे
आओ साथी, साथ चले हम-तुम।

अनिल कुमार - बून्दी (राजस्थान)

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