अनिल कुमार - बून्दी (राजस्थान)
सागर किनारे - कविता - अनिल कुमार
शनिवार, जुलाई 09, 2022
एक शाम
अकेले हम-तुम
बाँहो में बाँहें डाले
एक-दूजे के संग
आओ, साथ चले
सागर किनारे
मेरे जीवनसाथी-हमदम
एक संध्या
सागर किनारे
रेत पे चलते है पैदल-पैदल
उठती-गिरती लहरें
मन से मिलता हो मन
दूर कहीं सागर के
शांत क्षितिजपथ पर
ढूब रही, देखो
सूरज की अंतिम किरण
संध्या की लाली
सागर में लहराती
हल्की उजली सिंदूरी
बल खाती लहरें, सुन्दर स्वर्णिम
सूरज उतर रहा, देखो
मंद-मंद गति-शैली से
अस्ताचल पथ पर
धीरे-धीरे, सिंधु के अन्तर्मन
तट की चमकीली रेती में
होता हो जैसे
प्रेमी का प्रेमी से
प्रेम का मधु आलिंगन
हाथों में हाथ पकड़
सागर किनारे
आओ, साथ चले हम-तुम
बाँहों में डाले बाँहे
सागर किनारे
आओ साथी, साथ चले हम-तुम।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर