गुरुगान - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा'

गुरू देता सत्य का ज्ञान जिससे संकट दूर हो जाता है सारा।
सूर्य सा तेजस्वी स्वरुप ले गुरु ने सबका जीवन सँवारा।
अज्ञानता के घोर तम से गुरू की अलौकिक शक्ति ने उबारा।
आशीर्वाद हो गुरु का तो हर मुश्किल से मिल जाता है किनारा। 
नव प्रकाश, नव चेतना भर सम्पूर्ण संसार को गुरु ने तारा।
सदसंस्कार से कर सुसज्जित धन्य किया जीवन हमारा।
अम्बर सी गहराई ले ज्ञान गंगा का सिंचन किया प्यारा।
साथ पा गुरु का चमके कुंदन सा जिसे जाने जग सारा।
वशिष्ठ-विश्वामित्र जैसे गुरु के कारण राम ने जग को तारा।
गुरू की गुरूता से ही प्रभु की प्रभुता का मिलता है सहारा।
अहंकार कर दूर विनम्रता का भाव भर दिया जिसने प्यारा।
कनक सी चमक भर उसी ने  हमारे जीवन को निखारा।
लव-कुश की कल्पना भी बिन गुरू ले न पाती आकार प्यारा।
गुरू के आशीर्वाद से ही जिसने राम के अश्व को ललकारा।
ज्ञान ज्योत की जला गुरू ने अज्ञानता से जग को तारा।
प्रथम गुरू माँ ने सद्भाव भर धन्य किया जीवन हमारा।
मात पिता और गुरू वृंद का आज ऋणी है संसार सारा।
अथाह श्रद्धा भाव भर मन में  पाए उनका आशीर्वाद प्यारा।
गुरु की महिमा अपरंपार उनके गुण गाए जग सारा।
मानवता का हो विकास ऐसे भाव से भर दिया मन हमारा।
गुरू के पुण्य प्रताप के सम्मुख नतमस्तक है जग सारा।
ऐसे गुरु की महिमा का गुणगान करते न थकता मन हमारा।

डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा' - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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