सावन आया बादल छाए
डालों पे झूले फूलों के,
नटखट सखियाँ खेल रही हैं
सब झूल रहीं हैं झूलों पे।
तरह-तरह के फूल खिले हैं
वन-उपवन में हरयाली है,
आम शिखा पर जो इतराए
मनभावन कोयल काली है।
मोर भला अब क्यों न नाचे
खुल कर बादल बरस रहे हैं,
मनभावन सा मौसम पाकर
मधुर मिलन को तरस रहे हैं।
अनुराग भरा है कण-कण में
नव यौवन सब पे छाया है,
मस्ती में सब झूमें नाचें
यह कैसा आलम आया है?
तन मन में नव आस जगा दी
यह मौसम सबको भाया है,
मधुर मिलन का मेल कराने
सुन साजन सावन आया है।
गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)